कपिल देव ( भारत का पहला कोहिनूर )

 Introduction


भारतीय क्रिकेट के जाने माने ऑलराउंडर कपिल देव को आज कौन नहीं जानता। वर्ल्ड में भारतीय क्रिकेट का लोहा मनवाने वाले कपिल देव ही थे जब बाकी दुनिया भारत को नजरअंदाज कर रही थी तब कपिल देव ने ही 1983 में वर्ल्ड कप जीत कर सबको हैरान कर दिया था उन्होंने इस बात का परिचय दिया था कि अभी तो हमने सिर्फ शुरुआत की है।

कपिल देव ( भारत का पहला कोहिनूर )
कपिल देव ( भारत का पहला कोहिनूर )



Birth and education


कपिल देव का जन्म 6 जनवरी 1959 को चंडीगढ़ में हुआ था। उनके पिता एक कांट्रेक्टर थे कपिल देव की स्कूलिंग डीएवी स्कूल से हुई है, उसके बाद उन्होंने दिल्ली के हिंदू कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की। कपिल देव की शुरू से ही क्रिकेट में रूचि थी लेकिन उनके पिता उनको पहलवान बनाना चाहते थे।


Debut in cricket


कपिल देव ने मात्र 16 साल की उम्र में ही साल 1975 में हरियाणा के लिए अपना पहला फर्स्ट क्लास मैच खेला था। उनकी बॉलिंग स्किल्स, उनके बैटिंग करने के स्टाइल और उनकी फील्डिंग को देखते हुए जल्द ही उन्हें भारतीय टीम में शामिल कर लिया गया। उन्होंने 1978 में पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेला और 1979 में पाकिस्तान के खिलाफ ही वनडे में डेब्यू किया।


International Journey


जहां पर कपिल देव का डेब्यू 1978 में हुआ था वहीं पर उन्होंने अपना आखिरी मैच 1994 में खेला था। इस तरह उन्होंने 16 साल तक इंटरनेशनल क्रिकेट खेला। इस दौरान उन्होंने 131 टेस्ट मैच खेले जिसमें उन्होंने 5248 रन बनाए उनका औसत 31.05 का था ,

इसके साथ ही 29.64 की औसत से 434 विकेट भी झटके। अगर उनके वनडे कैरियर की बात करें तो उन्होंने 225 मैच में 23.79 की औसत से 3783 रन बनाए और 27.45 की औसत से 253 विकेट भी लिए। बल्लेबाजी और गेंदबाजी के अलावा वह एक शानदार फील्डर भी थे,

1983 के वर्ल्ड कप फाइनल में उनके द्वारा लिया गया कैच आज हर एक भारतीय को याद है।


1983 World Cup


साल 1983 में जब भारतीय टीम इतने ज्यादा मजबूत भी नहीं थी। पूरे वर्ल्ड की टीम उन्हें हल्के में ले रहे थे। जहां एक तरफ लगातार दो बार वर्ल्ड कप जीतकर वेस्टइंडीज के हौसले बुलंद थे, वहीं दूसरी तरफ इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका जैसी टीमें भी अपना वर्चस्व बना चुकी थी ऐसे में भारतीय टीम को अपनी साख बचानी थी।


भारतीय फैंस को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उनकी टीम यह वर्ल्ड कप जीत सकती थी, लेकिन कपिल देव ने अपनी टीम को इंस्पायर किया और प्रेरित किया जिसकी बदौलत वो टीम यह वर्ल्ड कप जीत पाई।


इस वर्ल्ड कप में उनके द्वारा जिंबाब्वे के खिलाफ बनाए गए 175 रन और फाइनल मुकाबले में वेस्टइंडीज के खिलाफ लिए गए 5 विकेट और एक बेहतरीन कैच यह ऐसे मोमेंट्स थे जो कोई भी क्रिकेट प्रेमी आज तक नहीं भूल पाया।


Highest Wicket Taker


साल 1991 में कपिल देव ने टेस्ट क्रिकेट में हाईएस्ट विकेट टेकर का रिकॉर्ड बनाया जैसे ही उन्होंने अपना 431 वां टेस्ट विकेट लिया उन्होंने रिचर्ड हेडली के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। लियोने जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया तब तक टेस्ट में उनके कुल 434 विकेट थे। कपिल देव के द्वारा 1991 में बनाया गया रिकॉर्ड 4 साल तक कोई नहीं तोड़ पाया इसके बाद कटनी बोल सुने उनके रिकॉर्ड को तोड़ा।


Various fields after cricket


हालांकि 1994 में रिटायरमेंट लेने के बाद भी कपिल देव ने देश सेवा की उन्होंने इंडियन यूथ को फ्री ऑफ कॉस्ट कोचिंग दी। इसके अलावा उन्होंने कमेंट्री और एडमिनिस्ट्रेशन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह क्रिकेट इंडिया लीग आईसीएल के फाउंडर भी रह चुके हैं उन्होंने आईसीएल का निर्माण इसीलिए किया था ताकि भारतीय युवाओं को ज्यादा से ज्यादा मौका मिले।


Various awards


भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए और भारतीय युवाओं को प्रेरित करने के लिए उन्हें 1991 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें 1982 में पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा गया जो कि भारत में चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। 2010 में उन्हें आईसीसी के द्वारा हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया।


Conclusion


कपिल देव भारतीय क्रिकेट के इतिहास में महान ऑलराउंडर में से एक है। उन्होंने 1983 में भारत को क्रिकेट वर्ल्ड कप जिताया। उनके एग्रेसिव और अटैकिंग खेलने के स्टाइल ने उनके फैंस का दिल जीत लिया। क्रिकेट के अलावा उन्होंने कोचिंग, कमेंट्री और एडमिनिस्ट्रेशन के क्षेत्र में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया कपिल देव का योगदान भारतीय क्रिकेट के इतिहास में हमेशा यादगार रहेगा और उनका जीवन एक प्रेरणा स्रोत बनता रहेगा।

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